कक्षा दस (बी स्तर) के छात्रों के लिए बिहारी की दोहे और व्याख्यान ।

बिहारी के दोहे

सोहत ओढैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात ।
मनौ नीलमनि-सैल पर आपतु परयौ प्रभात ॥

भाव :- पीले वस्त्र धारण किए भगवान श्रीकृष्ण सुशोभित लग रहे हैं एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि पीले वस्त्र पहने कृष्ण इस वेश में ऐसे लग रहे है कि मनो प्रात:कालिन प्रभात नीलमणि पर्वत पर सूर्य की पीली-पीली धूप पड रही हो ।
कहलाने एकत बसत अहि मयूर , मृग बाघ ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ – दाघ निदाघ ॥

भाव :-गर्मी के ऋतु की भयानक ताप ने पूरी धरती को तपोवन बना दिया है । इस ताप से प्रभावित हो कर परस्पर शत्रु-भाव रखने वाले जंगल के जानवार जैसे साँप और मोर तथा हिरण और सिंह साथ-साथ रहने लगे है ।
बतरस – लाल्च लाल की मुरली धरी लुकाइ ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ ॥

भाव :- कृष्ण से बेहद प्यार करने वाली गोपियाँ उनकी वंशी छिपाकर रख ली है । अब वह मुरली न चुराने का कसम अपने साँवले के पास कर रही है । दूसरी ओर भवों-भवों में मुसकुराती भी है । वह चाहती है कि कृष्ण अपनी मुरली लेने के बहाने आए और वह उसके साथ छेड-छाडा कर ले । वह कृष्ण की वंशी को देने के लिए साफ-साफ इनकार कर देती है ।

कहत, नटत, रीझत, खिजत, मिलत,खिलत, लजियात ।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात ॥

भाव :- भरे भवन में सब जनताओं के सामने नायक अपनी नैनों से बात करते हुए कहता है कि चले प्यार करे , इस से नायिका मना करती है । नायक उसकी मना के भाव से प्रसन्न हो जाता है । उसकी खुशी को देखकर नायिका खीज जाती है । नयनों की इतनी बातों से दोनों के नयन मिलते है परस्पर दोनों में प्यार होने लगता है । बाद में दोनों के चहरे खिल उठते है । इससे नायिका शर्माती है । इस तरह दोनों पूरे भरे भवन में नयनों द्वारा बाते करते है ।

बैठि रही अति सघन बन , पैठि सदन – तन माँह ।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह ॥

भाव :- कवि कहता है कि बाहर जेठ मास की तपती दोपहरी है । आराम के लिए कहीं छाया नहीं है । ऐसे समय में छाया भी छाँव को ढूँढने चली गई हो । गर्मी से बचने के लिए वह अपने भवन रुपी सघन में चली गइ हो । ऐसे भयंकर ताप से वह भी परेशान से विश्राम करने चली गई है ।
कगज पर लिखत न बनत , कहत सँदेसु लजात ।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात ॥

भाव :-विदेश गए प्रियतम से नायिका कहती है कि हे प्रिय ! मैं प्यार का कागज पर लिखकर बताना चाहती हूँ । पर लिख नहीं पा रही हूँ क्योंकि आँसू , पसीने ओर कँपकँपी के कारण कागज पर लिखा नहीं जा रहा है । कोई संदेशवाहक द्वारा संदेश भेजना चाहती हूँ कि प्रेम की बाते कहने में लाज आती है । मै कहती हूँ कि अब तुमी अपने हृदय पर हाथ रख कर महसुस करो, अपनी धडकन से कि मैं कितना तुम्हे चाहती हूँ ।
प्रगट भए द्विजराज – कुल सुबस बसे ब्रज आइ ।
मेरे हरौ कलेस सब , केसव केसवराइ ॥

भाव :- इस दोहे के दो अर्थ है । कवि कृष्ण से कहते है कि आप चंद्रवंश में पैदा हुए । अपनी इच्छा से ब्रज में आ कर बैठे । आप मेरे पिता के समान है । मेरे सब कष्ट दूर करो ।
है पिता श्री केशवराय जी ! आपने ब्राहमण – कुल में जन्म लिया । फिर आप अपनी इच्छा से ब्रज में आ कर बैठे । आप भगवान श्रीकृष्ण के समान पूज्य है । आप मेरे सब कष्ट दूर करो ।
जपमाला , छापैं , तिलक सरै न एकौ कामु ।
मन – काँचे नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु ॥

भाव :- कैवि बिहारी कहते है कि हाथ में जपमाला थाम के , माथे पर चंदन का लेप करके , जपा करने से कोई काम नहीं आता । ये सब बाहरी दिखावा है । इससे प्रभु को संतुष्ट नहीं कर सकते है । भगवान की सच्ची सेवा करना है तो दिखावा छोड और सच्चे मन से पूजा कर तब राम का सच्चा भक्त कहलाएगा ।

के बारे में Ramesh Nayak
i m the TGT Hindi teacher at JNV Udupi, a reputed institute working under the Govt of India

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